शिवा ने मां का बन्धन खोला
जनवरी 7, 2009 को 8:28 अपराह्न | आत्मकथा, काकोरी के शहीद, काकोरी षड़यंत्र, रंग दे बसंती चोला, वन्दे मातरम, सरफ़रोशी की तमन्ना में प्रकाशित किया गया | 3 टिप्पणियांटैग: 6 April 1927, रंग दे बसंती चोला, वन्दे मातरम, संक्षिप्त विवरण, सजायें, सरफ़रोशी की तमन्ना, फ़ैसला
जेल के अन्दर अभियुक्तों ने प्रायः सभी त्योहार बड़े उत्साह से मनाए । सरस्वती पूजा, बसन्त पंचमी और होली अभियुक्तों की खास तौर से बहुत अच्छी हुई । बसन्त के दिन जब सबों ने मिल कर यह गाना गाया तो सबों के हृदय में देशभक्ति की हिलोरें उठने लगी :
मेरा रंग दे बसंती चोला
इस रंग में रंग के शिवा ने मां का बन्धन खोला ।
यही रंग हल्दीघाटी में खुल कर के था खेला ।
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह मेला ।
मेरा रंग दे बसन्ती चोला । अब आगे … . ..
इनके त्यौहारों में कितनी अपूर्वता थी । बसन्त और होली का मूल्य और महत्व ये ही अनुभव कर सके होंगे । आनन्द का दिवस था । नौकरशाही के हाथों हमारा भविष्य अन्धकार में तो निश्चित ही है । हमारी रची हुई सभी कविताओं का जिक्र करना यहां पर असम्भव प्रतीत होता है, कारण वे सभी रचनायें जेल के बाहर तक न पहुंच सकेंगी । हां कुछ गाने जो अभियुक्त कचहरी जाते समय गाया करते थें, वह इस प्रकार है :
एक : |
अन्य गीतों का हम यहां पर स्थानाभाव के कारण वर्णन करने में असमर्थ है,कुछ जिक्र किये देते हैं.. .. |
1. अपने ही हाथों से सर कटाना है हमें । मादरे हिन्द को सर भेंट चढ़ाना है हमें ।। 2. एक दिन होगा कि हम फांसी चढ़ायें जायेंगे । नौ जवानों देख लो हम फिर मिलने आयेंगे ।। 3. हमने इस राज्य में आराम न कोई देखा । देखा जो ग़रीबों को तो रोते देखा ।। |
आखिर में मुकद्दमों की सुनवाई खत्म हुई । 6 अप्रैल सन् 1927 को सेशन जज मामले का फैसला सुनाने को थे । उस दिन पुलिस का पहरा सब दिनों से कहीं अधिक कड़ा था । बहुत थोड़े व्यक्ति भीतर पहुंच पाये थे । करीब 11 बजे अभियुक्त अपनी मस्तानी अदा से ‘ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,’ गाते हुए मोटर लारियों से उतरे । अदालत में घुसते ही वन्देमातरम् के नाद से उन्होंने भवन को गुंजा दिया । फैसला सुनने के लिए सब शांति भाव से खड़े हो गये । मस्तकों पर रोली का तिलक लगा था । अदालत के चारों ओर पुलिस और सवार गश्त लगा रहे थे । जनता के बाहर खड़े होने से ही जज महोदय का दिल धड़कने लगता था । उस दिन पं0 जगत नारायण जी कचहरी नहीं आये । अन्य सरकारी वकील भी मुंह छिपाकर चल दिये । अभियुक्तों के मुख पर किसी प्रकार का विकार न था, प्रत्युत उनमें मुस्कराहट थी । फ़ैसला बहुत लम्बा था । फ़ैसले में ब्रिटिश सरकार का तख्त उलट देने के व्यापक षड़यन्त्र का जिक्र करने के बाद प्रत्येक अभियुक्त पर लगाये गये भिन्न-भिन्न आरोपों पर विचार किया गया था और तदनुसार सबकों सजायें सुनाई जाने लगीं । अभियुक्तों के सम्बन्ध में जज महोदय ने स्पष्टतया कहा कि वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये इस कार्य में प्रवृत नहीं हुए । पर किसी अभियुक्त ने न तो पश्चाताप ही किया और न इस बात का बचन दिया कि भविष्य में इस प्रकार के आन्दोलनों में भाग न लेंगे । सेशन जज की यह इच्छा थी कि यदि अभियुक्त ऐसी कुछ बातें कह दें, तो उनके साथ रियायत की जा सकती है । किन्तु अभियुक्तों के लिये ऐसा करना अपने ध्येय से डिग जाना था । फिर क्या था, सजायें सुनाई जाने लगी । अभियुक्तों पर 121 अ, 120 ब और 396 धारायें लगाई गई थीं । इनके अनुसार निम्नलिखित सज़ायें उन्हें मिली … जारी है
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