अरे, एक दिन तो और रह लेने दो

जनवरी 3, 2009 को 9:38 अपराह्न | आत्मकथा, काकोरी के शहीद, काकोरी षड़यंत्र, संक्षिप्त विवरण, सरफ़रोशी की तमन्ना में प्रकाशित किया गया | 2 टिप्पणियां
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अब तक आपने पढ़ा …

श्री ज्याति्शंकर दीक्षित बड़े खु्शदिल आदमी है । जेल कर्मचारी तो इनकी खुशहाली देख कर कुढ़ा करते थे । आप जब छोड़े जाने लगे तो आपने अनुरोधपूर्वक मजिस्टेट से कहा, “ तो क्या छोड़ ही दीजियेगा…  अरे, एक दिन तो और रह लेने दो ।”  अब आगे…

किन्तु आप उसी समय कठघरे से बाहर कर दिये गये । उस समय अपन बड़े अन्यमनस्क थे । दो मुखबिर हो गये। शेष 24 अभियुक्तों में से श्री अशफ़ाक, श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी और श्री चन्द्रशेखर ‘आजाद‘ जो अभी तक गिरफ़्तार न किये जा सके थे, फरार करार किये गये । अब 21 व्यक्ति सेशन सुपुर्द थे । एक-एक व्यक्ति पर कई-कई मुकद्में लगाये गये । अभियुक्तों के साथ बड़ी सख्ती की गई । जिन डकैतियों के इल्जाम उन पर लगाये गये उनकी नकलें भी वे न ले सकते थे । अभियुक्तों के मन के मुताबिक वकीलों का प्रबन्ध न था । महीनों तक बिना मामला चलाये उन्हें जेलों में सड़ाया गया, पुलिस को मियादपर मियाद मिलती थी, और अभियुक्तों के साथ जेल में बड़ा नृशंस व्यवहार होने लगा । इसकी शिकायत बाहर तक पहुंची । लोगों ने अभियुक्तों के प्रति यत्र-तत्र सहानुभूति दिखाई, तो उनको भी मुचालिके लिये जाने लगे । अभियुक्त जिस समय अदालत में लाये जाते थे, तो उनके हथकड़ियों पड़ी रहती थीं । अब, बेड़ियां पहिनाने की भी तैयारी हो रही थी । उसके विरोध में अभियुक्तों ने अनशन शुरू कर दिया । 48 घंटे बाद समझाने बुझाने पर बड़ी मुश्किल में लोगों ने अपना अनशन तोड़ा । इस समय सेठ दामोदर स्वरूप जी की तबियत खराब होती जा रही थी । उनका कृश्काय गात जेल का पाश्विक व्यवहार अधिक न सहन कर सका । एक दिन उनकी तबियत बहुत खराब हो गई । बीमार तो वे पहिले से ही कहे जाते थे, किन्तु जेल की दुव्र्यवस्था और सुविधाओं के कारण उनकी बीमारी भयंकर रूप धारण करती जाती थी । एक दिन सहसा उनकी नाड़ी छूट गई और लोगों को उनकी मृत्यु का भय होने लगा । फिर भी उनके साथ कोई भी रियायत न की गई । ऐसी अवस्था में भी वे कोर्ट में लाये जाते थे । एक बार सेठ जी ने वैद्यक उपचार के लिये अपनी इच्छा प्रकट की किन्तु कर्मचारियों ने बिल्कुल सुनवाई नहीं की, एक ओर खाने-पीने की सभी अभियुक्तों की शिकायत थी, दूसरी ओर सेठ जी की इस रूग्णावस्था में अदालत में हाजिर होने का अधिकारियों की दुराग्रह जारी था । अभियुक्तों ने इसका विरोध किया । फलस्वरूप एक बोर्ड इस लिये बैठाया गया  कि वे सेठ जी की बीमारी के विषय में सरकार को अपनी राय दें । बोर्ड ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि सेठ जी केार्ट में हाज़िर होने के लिए उपयुक्त है । मजबूर होकर सेठ जी कोर्ट में लाये गये । किन्तु अधिक बीमार होने के कारण उनकी अवस्था अदालत में आकर और भी खराब हो गई । उन्हें गश आ गया । सेठ जी की चिकित्सा प्रणाली तक के बदलने की इज़ाजत नहीं मिली थी, अतः अभियुक्तों ने अनशन शुरू कर दिया । सरकार ने हार कर उन्हें बरेली भेज दिया । किन्तु वहां भी उन्हें सेहत न हुई । फिर देहरादून भेजे गये । वहां भी काफी समय तक रहने के बाद कोई परिवर्तन न देख पड़ा । अन्त में 1000 रू0 की जमानत ओर 1000 रू0 के मुचालिके पर वे छोड़ दिये गये । सेठ जी तक से अनेक स्थानों पर अनेक प्रकार की चिकित्सायें करा चुके हैं, किन्तु उन्हें आज तक पूर्ण आरोग्य लाभ नहीं हुआ है । अब समाचार है कि उन पर फिर मुकद्मा चलाया जाने वाला है। खाने पीने तथा जेल के कर्मचारियों के दुर्व्यवहार की शिकायतें अभी तक वैसी ही थीं । अभियुक्तों ने इस सम्बन्ध में यू0पी0 सरकार के होम मेम्बर के पास इस आशय का एक आवदन पत्र भेजा कि उन्हें कुछ सुविधायें दी जायें, और जेल कर्मचारियों के दुव्र्यवहार में कुछ नर्मी की जाय । किन्तु कोई उत्तर न मिला । जेलों के इन्सपेक्टर-जेनरल से भी उन्होंने शिकायत की, बरसात का पानी उनकी कोठरियों में भरा करता था, किन्तु इसकी भी कोई सुनवाई न हुई । अधिकारी तो उन्हें हर प्रकार का कष्ट देने को तुले थे और अभियुक्त धैर्यपूर्वक सब सहन कर रहे थे । आखि़र में उन्होंने अनशन प्रारम्भ कर दिया । केवल बनवारी लाल इस व्रत में शामिल नहीं हुआ । अभियुक्तों के व्रत की हालत को छिपाने का सरकार की ओर से यहां तक प्रयत्न किया गया कि उनका कोई सम्बन्धी उनसे मिलने नहीं पाता था । सरकार की ओर से खिलाने पिलाने के बारे में जबर्दस्ती भी की गई । किन्तु अभियुक्त अपनी बात पर अटल रहे । अन्त में सरकार झुकी । दोनों ओर से समझौता हुआ और अनशन टूटा यह व्रत लगभग 20 दिन तक रहा । इन दिनों अदालत का काम भी बन्द था ।

जेल में तो अभियुक्तों पर पूर्व निश्चित यन्त्रणायें थीं हीं,  बाहर उनके सम्बन्धियों और मित्रों के साथ जो भलमन्सी की गई वह बड़ी कारूणिक है। हर जगह पुलिस की मनमानी देखने को मिलती थी । गिरफ़्तार किये जाने के बाद भी श्री शीतलासहाय, श्री भूपेन्द्रनाथ सन्याल आदि के यहां से पुलिस सामान उठा ले जाने में नहीं हिचकी । श्री षचीन्द्रनाथ बख़्शी के फ़रार हो जाने के कारण उनके घर की सभी मन्कूला और गैर मन्कूला जयदाद जब्त कर ली गई । उनके पिता श्री कालीचरण बख़्शी के घर पर रात में छापा मारा गया और कपड़ा, लत्ता, घी-चावल और दाल तक सब पुलिस उठा ले गई । उनके परिवार के सभी व्यक्ति जाड़े में ठिठुरते रहे किन्तु पुलिस महारानी ने कुछ परवाह नहीं की । भारत की पुलिस इन बातों में बड़ी अभ्यस्त है । उस का यह दैनिक व्यापार है । ऐसी घटनायें केवल एक या दो जगह ही नहीं हुईं,  वरन सब जगहों की पुलिस एक ही सांचे की ढली है । सहारनपुर और शाहज़हाँपुर में भी यही हालत थी । काशी विद्यापीठ में एक विद्यार्थी केवल इस लिये गिरफ़्तार किया गया कि सेठ दामोदर स्वरूप की हाज़िरी देखते समय वह भी उक्त घटना के दिन गैर हाज़िर था । यह सब इसलिये हो रहा था कि जिस प्रकार हो सके, हर तरह की युक्तियुक्त अथवा निस्सार बातें अभियुक्तों के बारे में मालूम की जायें और गढ़ ली जायें । खैर,  ये दिन भी बीत गये । सेशनकोर्ट में स्पेशल जज श्री हेमिल्टन साहब की इजलास में मामला शुरु हुआ । उस दिन 21 मई थी । लगातार 1 वर्ष तक मुकद्दमा चलता रहा । अभियुक्त बेचारों के लिए 1 साल तो टलुहापन्थी में ही जेल हो गई । सरकार की ओर से अभियुक्तों के लिए  पं0 हरकरणनाथ मिश्र वकील नियुक्त हुए और सरकार के पक्ष में पं0 जगतनारायण मुल्ला तैनात किये गये । उन्होंने बाक़ायदा 1 साल तक 500 रू0  रोजाना गवर्नमेण्ट की जेब से निकाले । पाठक देख लें कि पं0 जगतनारायण मुल्ला के प्रतिरोध में अकेले मिश्र जी को अभियुक्तों की ओर से नियुक्त करना किस श्रेणी का न्याय है । कुछ भी हो, पं0 जगतनारायण मुल्ला ने तो सरकार बहादुर से एक लाख से अधिक पुजवाया । खैर,  भाई गरीब के भी राम हैं ! यहां पं0 हरकरननाथ मिश्र के अतिरिक्त अभियुक्तों की ओर से कलकत्ते के मि0 चौधरी, लखनउ के श्री मोहनलाल सक्सेना,  श्री चन्द्रभाल गुप्त,  श्री कृपाशंकर हलेजा आदि वकील थे । इन्होंने बड़ी उदारता, लगन, त्याग और तत्परता के साथ वकालत की । सेशन-कोर्ट में अभियुक्त अपनी सफाई में बहुत से गवाह पेश करना चाहते थे । किन्तु बाद में यह तय हुआ कि बहुत से गवाह पेश करने से कोई लाभ नहीं होगा । इस लिये थोडे़ ही गवाह पेश किये गये । अभियुक्तों ने अनेक मिन्नतें और प्रार्थनायें की कि, उनका मुकद्दमा हेमिल्टन साहब की अदालत से मुन्तकिल किया जाये, किन्तु कौन सुनता है ?  इस तरह की निरंकुशता देख अभियुक्तों को और निराशा हुई । श्री रामप्रसाद बिसमिल ने 26 जून 1926 को एक दरख्वास्त इसी आशय की दी,  जो गुप्त रखी गई । मालूम नहीं उसका क्या हुआ । बाकायदा नकल मांगने पर उसकी नकल देने से भी साफ इन्कार कर दिया गया । मामला इन्हीं हुजूर की अदालत में चलता रहा.

मामला चल रहा था। बड़ी निरंकुशता जारी थी । किन्तु देशभक्ति और मर मिटने की तमन्ना ने अभियुक्तों  का जेल-जीवन भी आमोदमय बना रखा था ।  अभियुक्तों का कचेहरी आने-जाने का दृश्य दर्शनीय होता था । वह बीर-बांकुरे, राजहंस जैसे राजकुमार और तपस्वी जिस समय मोटर से उतरते थे, मालूम होता था मूर्तिमान सुरेश देवताओं सहित इहलोक लीला देखने के हेतु आये हैं ।             पं0 रामप्रसाद बिसमिल के पीछे जब सब आत्मायें वन्देमातरम् गाती हुई चलती थीं– उस दृश्य में एक अलौकिक छटा थी ।  जिस के वर्णन करने के लिए तुलसी दासजी के शब्दों में यही कहना पड़ता है कि गिरा अनयन नयन बिनु बानी । धन्य है वे आंखें जिन्होंने जी भर के उन की मस्तानी अदा को निरखा । उन के मोटर से उतरते ही वन्देमातरम्, भारत माता की जय,  भारत प्रजातन्त्र की जय आदि के घोष से कचहरी का वायुमण्डल पवित्र हो जाता थां । उनको देखने के लिए और मधुर गीत सुनने के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठी होती थी । अधिकारियों के हृदय इस नाद को सुन कर दहल उठते थे । बेचारे क्या करते ! एक दिन कहीं ताव में आकर एक कान्स्टेबल महाराज ने एक अभियुक्त के हाथ लगाया ही था कि स्वाभिमानी मस्ताना की आंखों में खून उतर आया उन से न रहा गया और एक ने कान्स्टेबल के थप्पड़ मारा,  फिर क्या था, दूसरी आफ़त खड़ी हुई । एक नया मुकदमा पुलिस ने ज़िलाधीश के यहां दायर कर दिया । किन्तु फिर आपस में समझौता हो गया ।
अदालत का दृश्य तो एक खास खूबसूरती रखता था । एक ओर पंडित राम प्रसाद,  श्री योगेश बाबू,  श्री विष्णुशरण दुबलिस,  श्री सचीन और  श्री सुरेश बाबू अपनी स्वाभाविक स्वाभिमानता मिश्रित गम्भीरतासे मुकद्दमों को सुनते थे, तो बगल में ही मन्मथ, राजकुमार, रामदुलारे,  रामकिशन,  प्रेमकिशन इत्यादि की चुहलबाजियों के मारे कोर्ट की नाक में दम था उनके इस दृश्य को देखने के लिए अदालत के आस-पास खुफिया पुलिस के दूतों की भरमार होते हुए भी बहुत से लोग इक्कट्ठे रहते थे । कचहरी में कोई प्रेस रिपोर्टर आ भी गया,  तो पुलिस महारानी के मारे बिचारे के आफत थी ।

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