पुलिस महारानी के मारे आफत थी

जनवरी 6, 2009 को 7:54 अपराह्न | आत्मकथा, काकोरी के शहीद, काकोरी षड़यंत्र, रंग दे बसंती चोला, सरफ़रोशी की तमन्ना में प्रकाशित किया गया | 4 टिप्पणियां
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अब तक आपने पढ़ा … 

अदालत का दृश्य तो एक खास खूबसूरती रखता था । एक ओर पंडित राम प्रसाद,  श्री योगेश बाबू,  श्री विष्णुशरण दुबलिस,  श्री सचीन और  श्री सुरेश बाबू अपनी स्वाभाविक स्वाभिमानता मिश्रित गम्भीरतासे मुकद्दमों को सुनते थे, तो बगल में ही मन्मथ, राजकुमार, रामदुलारे,  रामकिशन,  प्रेमकिशन इत्यादि की चुहलबाजियों के मारे कोर्ट की नाक में दम था । उनके इस दृश्य को देखने के लिए अदालत के आस-पास खुफिया पुलिस के दूतों की भरमार होते हुए भी बहुत से लोग इक्कट्ठे रहते थे । कचहरी में कोई प्रेस रिपोर्टर आ भी गया,  तो पुलिस महारानी के मारे बिचारे के आफत थी …      अब आगे…

हां, इंडियन डेली टेलीग्राफ ने कुछ मनोयोग के साथ इस ओर काम किया । शाम को जब इन लोगों की मोटरलारी निकलती, तो सड़क के दोनों ओर जनता काफी तादाद में उनकी, बेड़ी की झंकार में मस्ताना गाना सुनने के लिए खड़ी रहती थी । उनके गानों का वहां इतना आदर हुआ कि एक पैसे से लेकर दो दो आने में उनके एक गाने की प्रति बिकती देख पड़ती थी । कुछ शब्दों में उनके जेल की दिनचर्या भी सुन लीजिये । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि लखनऊ जेल के समस्त कैदी इन शहीदाने-वतन की बड़ी श्रद्धा करते थे । जितने दिन तक ये लोग उस जेल में रहे, सब कैदियों को भी अपने-अपने दुख दर्द भूल से गये थे । यहां पर ये लोग मस्ती से रहते थे, मगर कोई-कोई भावुक कैदी इनकी पवित्र आत्मा और भविष्य पर आठ-आठ आंसू रोता भी था ।

इन शहीदों के चरित्र-बल से यहां पर ऐसा वातावरण पैदा कर दिया कि प्रत्येक कैदी की हार्दिक इच्छा अनुभव होने लगी कि वह इन्हें हर प्रकार यथाशक्ति आराम दें । इनकी हर जरूरियातों को सब कैदी मुहैय्या करने को कटिबद्ध रहते थे । श्री सुरेश और श्री राजकुमार के गाने से तो समस्त कैदी क्या, जेल के कर्मचारीगण तक मुग्ध थे । इन लोगों के साथ में ताशा, हारमोनियम, इसराज इत्यादि भी थे । शाम को इनका कीर्तन जमता था, कभी कबड्डी खेलते थे, तो कभी कोई सदस्य अपनी नई् शैतानी सब के सम्मुख पेश करता था । 

बड़े़ आनन्द के दिन थे । केवल हंसी खेल ही नहीं, सुरेश बाबू की मण्डली में बड़े गम्भीर विषयों पर मनन और वाद विवाद भी हुआ करता था । आध्यात्मवाद वस्तुवाद और आदर्शवाद सभी की समय समय पर विवेचना की जाती थी । प्राचीन धर्मवाद और आध्यात्म के समन्वय का प्रतिपादन करना चाहते थे, तो पंडित जी देश के लिए सब से यह कहला कर मानते थे कि अब दीन है तो यह है.. ईमान है तो यह है । कभी – कभी इन विवादों में प्रान्तिकता भी आ जाती थे, किन्तु पंडित जी इन सब बातों पर तुरन्त पानी फेर देते थे । इन लोगों में कुछ शाकाहारी थे, तो कुछ मच्छी -भात वाले भी हैं । खान-पान में कभी -कभी कुछ बंगालीपन आ ही जाता था, किन्तु ज्यादती कभी नहीं हुई, उसमें भी लोग आनन्द ही अनुभव करते थे । रविवार के दिन सब अभियुक्त ( ? यह प्रश्नचिन्ह मैंनें लगाया है – अमर ) नियमपूर्वक रहते थे । यह सब के पूजा का दिन होता था । आजके इस दिन सब लोग विशेष प्रसन्न देख पड़ते थे । श्री राजकुमार और रामदुलारे गाना बड़ा अपूर्व जानते हैं,  उनका गाना शुरू होता तो समा बंध जाता था ।

खाने के वक्त आज सबसे अच्छा खाना बनेगा सुरेश बाबू इस काम के लिए आगे आते । एक बार रविवार के दिन उन्होंने बाईस भांति की तरकारियां बनाईं और सब ने मिल कर आनन्दपूर्वक भोजन किया । करीब-करीब अब सभी व्यक्तियों ने जेल जीवन में अपना कार्यक्षेत्र अपने हाथ बना लिया था । अब यदि हमपर कभी कोई ज्यादती होती तो सुरेश तथा सचीन बाबू अपनी स्वभावोचित धैर्य-शीलता से सब को समझाया करते । पंडित जी तथा श्री दुबलिस तो अपनी स्वाभिमान का सदैव ख्याल रखते नवयुवक लोग तो अपनी चुहलबाजियों के आवेग में मार-पीट भी कर बैठते थे । किन्तु इतना होते हुए भी सब में अनुशासन था, सब अपने से बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करते थे ।

श्री प्रणवेश चटर्जी का जेल जीवन बिल्कुल निराला था । हर वक्त उनकी आंखे अलसाई हुई रहती थीं । उनका चित्त प्रतिपल सन्ताप से भरा रहता था मालूम होता था, आप पर बहुत बड़ा दुव्र्यवहार और ज्यादती की गई है । आप बड़़े भावुक हैं और सदैव अप्रसन्न रहते थें ठाकुर रोशन सिंह सदैव निर्लिप्त और निर्विकार रहे । उनके रहन सहन से यह सबको भासित होता था कि आप हमेशा कुछ सोचा करते हैं । अशफाकउल्ला खां का जीवन हर दिशा में आदर्श था । आप बड़े रसिक और उर्दू के अच्छे कवि थे.. श्री अशफाक उल्ला और श्री शचीन बख्शी पहिले बहुत दिन तक फरार रह चुके थे अतः जब यह दोनों सज्जन दिल्ली और भागलपुर में क्रमशः पकड़े गये तो इन्हें पुलिस ने बड़ा कष्ट दिया और इनके साथ कई प्रकार की ज्यादतियां की गईं । श्री अशफाक उल्ला बड़ी ही मस्त तबियम के आदमी थे सभी इन्हें चाहते थे । कभी-कभी ये शेरों में अईनुद्दीन साहब को फटकार दिया करते थे । कहते हैं कि अईनुदद्दीन साहब का बचपन में अशफाक उल्ला खां के परिवार से सम्बन्ध था । इस लिये कभी-कभी उस बात का जिक्र करते हुए श्री अशफाक उन्हें बनाते बहुत थे ।

बनवारीलाल ने इन दिनों अपना बयान वापिस ले लिया था । अतः वह बडा अनुतप्त और दुखी रहा करते थे । श्री भूपेन सन्याल कुछ क्षीण अवश्य हो गये थे । कचहरी में एक बाद श्री पार्वती देवी, भाई परमानन्द और मो0 शौकतअली भी मुकद्दमा देखने गए । सब से हंसोड़ श्री राजेन्द्र लहरी थे यहां तक कि वे बड़े  से बड़े कर्मचारी के सम्मुख भी मीठी चुटकियां लेने से बाज नहीं आते थे । एक बार जब श्री सेठ दामोदरस्वरूप जी स्टरेचर पर अदालत में लाये गये तो अभियुक्तों को बड़ा भारी मानसिक आघात पहुंचा । कटघरे के अन्दर से ही एक ओर पंडित रामप्रसाद जी शेर की तरह हिन्दी में दहाड़-दहाड़ कर हेमिल्टन साहब का सत्कार कर रहे थे । दूसरी ओर से दुबलिस जी अंग्रजी में ब्रिटिश गवर्नमेण्ट के न्यायविधान की धज्जियां उड़ा रहे थे और बीच-बीच में बड़े उत्तेजनापूर्ण शब्दों में उस दिन की अदालत की कार्यवाही बन्द कर देने को उद्यत थे । हार कर उस दिन की अदालत उठीं फिर दुबारा सेठ जी उस अवस्था में अदालत में नहीं लाये गये । अभियुक्तों की विजय हुई ।

वन्दे मातरम

जेल के अन्दर अभियुक्तों ने प्रायः सभी त्योहार बड़े उत्साह से मनाए । सरस्वती पूजा, बसन्त पंचमी और होली अभियुक्तों की खास तौर से बहुत अच्छी हुई । बसन्त के दिन जब सबों ने मिल कर यह गाना गाया तो सबों के हृदय में देशभक्ति की हिलोरें उठने लगी :
मेरा रंग दे बसंती चोला
इस रंग में रंग के शिवा ने मां का बन्धन खोला ।
यही रंग हल्दीघाटी में खुल कर के था खेला ।
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह मेला ।
मेरा रंग दे बसन्ती चोला ।
           

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