निम्नलिखित सज़ायें उन्हें मिली …

जनवरी 8, 2009 को 8:43 अपराह्न | आत्मकथा, काकोरी के शहीद, काकोरी षड़यंत्र, रंग दे बसंती चोला, वन्दे मातरम, सरफ़रोशी की तमन्ना में प्रकाशित किया गया | 1 टिप्पणी
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अब तक आपने पढ़ा.. 

अभियुक्तों के सम्बन्ध में जज महोदय ने स्पष्टतया कहा कि वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये इस कार्य में प्रवृत नहीं हुए । पर किसी अभियुक्त ने   न तो पश्चाताप ही किया और न इस बात का बचन दिया कि भविष्य में इस प्रकार के आन्दोलनों में भाग न लेंगे । सेशन जज की यह इच्छा थी कि यदि अभियुक्त ऐसी कुछ बातें कह दें, तो उनके साथ रियायत की जा सकती है । किन्तु अभियुक्तों के लिये ऐसा करना अपने ध्येय से डिग जाना था । फिर क्या था, सजायें सुनाई जाने लगी । अभियुक्तों पर 121 अ, 120 ब और 396 धारायें लगाई गई थीं । इनके अनुसार निम्नलिखित सज़ायें उन्हें मिली …  अब आगे..

श्री राम प्रसाद बिस्मिल-  पहली दो धाराओं के अनुसार आजन्म कालापानी, तीसरी के अनुसार फांसी
श्री राजेन्द्रनाथ लहरी –    पहिली दो धाराओं के अनुसार आजन्म कालापानी, तीसरी के अनुसार फांसीं
श्री रोशनसिंह –             पहली दो धाराओं के अनुसार 5-5 वर्ष की सख़्तकै़द तीसरी के अनुसार फांसीं
श्री बनवारी लाल –        इकबाली मुलजिमद्ध   प्रत्येक धारा के अनुसार 5-5 वर्ष की सख़्त कै़्द
श्री भूपेन्द्रनाथ सन्याल -  इकबाली मुलजिमद्ध   प्रत्येक धारा के अनुसार 5-5 वर्ष की सख़्त कै़्द
श्री गोविन्द चरणकार -   10 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री मुकुन्दी लाल -         10 वर्ष की सख़्त कैद।
श्री योगेषचन्द्र चेटर्जी -    10 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री मन्मथनाथ गुप्त -      14 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री प्रेम किशन खन्ना -   5 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री प्रणवेश चेटर्जी -        5 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री राजकुमार सिन्हा -    10 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री राम दुलारे -            5 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री रामकिशन खत्री -     10 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री रामनाथ पाण्डेय -     5 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री शचीन्द्रनाथ सन्याल-  आजन्म कालापानी
श्री सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य-   7 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री विश्णुशरण दुबलिस-  7 वर्ष की सख़्त कै़द
श्री हरगोविन्द और श्री शचीन्द्रनाथ विश्वास इसलिये छोड़ दिये गये कि उनके खिलाफ़ किसी बात का प्रमाण नहीं मिला । इस प्रकार ये बेचारे डेढ़ साल तक व्यर्थ ही जेलों में सड़ाये गये । मुख़बिर बनारसीलाल और इन्दुभूषण मुख़बिरी के इनाम में छोड़ दिये गये । सेठ दामोदर स्वरूप बीमार थे इसलिये उनका मामला स्थगित रहा । गत अगस्त महीने 1928 ई0 में सरकार ने सेठ जी पर से अभियोग उठा लिये और सेठ जी बिल्कुल छोड़ दिये गये । फैसले में अन्य बातों के साथ-साथ एक बात यह भी कहीं गई कि फांसी की सज़ा चीफ़ कोर्ट की स्वीकृति से दी जायेगी और मामले की अपील की मियाद 7 दिन होगी । इसी मियाद के अन्दर यदि अपील करना है तो कर दी जाय । जिस समय फ़ैसला सुनाया जा रहा था, कोर्ट का वह दृश्य बड़ा ही अभिनव था । फांसी, कालापानी आदि लम्बी-लम्बी सजायें सुनाई जा रही थी ।

रोशनसिंह के लिए फांसी की आज्ञा बिलकुल अनहोनी बात न थी । उन्होंने हंस कर कहा यह तो होना ही था । जब श्री राजेन्द्र का फांसी की आज्ञा मिली, तब उन्हें जज महोदय के इस निष्कर्ष पर हंसी आ गई । सीटी बजाते हुए वे हेमिल्टन साहब को धन्यवाद देने वाले थे । फिर श्री हजेला जी से आपने कहा कि हम आपके बड़े कृतज्ञ हैं और हमने जिस दिन यह व्रत लिया, तब समझ लिया था कि यही एक दिन होने को भी है, फिर हमें किसी प्रकार का परिताप कैसा ? यह मेरा पुर्नजीवन है ।

फै़सले सुन चुकने के बाद पहिले सब छोटे सदस्य आगे बढ़े और सब ने पं0 रामप्रसाद जी के पैरों की धूल अपने-अपने मस्तकों पर ली । फिर उन्होंने फांसी की सजा पाये हुए रोशनसिंह तथा राजेन्द्र लाहिरी के भी पैर छुये । अभियुक्तों को जो अभी तक लगभग डेढ़ साल से एक साथ थे, अलग-अलग होने का आशंका हुई । कुछ से चिर-वियोग होना था, अतः सब में एक विचित्र भाव हिलोरें मार रहा था । सब अभियुक्त एक दूसरे से गले मिले और जब अदालत से चलने लगे तक अन्तिम बार सब ने मिल कर वन्दे-मातरम का नाद किया । कमरे के बाहर निकलते समय सब के आगे श्री रामप्रसाद थे । एक बार सुनाई पड़ा वन्दे-मातरम जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को । दूसरी बार गम्भीर घोष हुआ और वायुमण्डल गूंज उठा …
दरो दीवार पर हसरत से नज़र करते हैं ।
खुश रहो, अहले वतन हम तो सफर करते हैं ।

उसी रात में सब अभियुक्तों को भिन्न-भिन्न 12 जेलों में टांसफर किया गया । कानपुर स्टेशन पर से जिस समय श्री योगेश, श्री रामदुलारे तथा श्री चौधरी महाशय जा रहे थे, तब उनके कुछ मित्र उनसे मिले । उन्हें फल इत्यादि खिलाये गये । इसी बीच में फ़रारी मुलज़िमों में से श्री अशफाकउल्ला खां देहली में और श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी भागलपुर में गिरफतार किये गये । इन पर अलग से मामला चला और श्री अशफ़ाकउल्ला को फांसी तथा श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजन्म काले पानी की सजाएं दी गयी। इस प्रकार मामले का अन्त हो चुकने के बाद एक ओर तो सरकार का दमन अभियुक्तों पर अधिक प्रखरता के साथ शुरू हुआ और दूसरी ओर अभियुक्तों ने इस अनीति का जो़रदार विरोध शुरू किया । ये लोग राजनैतिक कैदी थे, इनके साथ राजनैतिक कैदियों का सा ही बर्ताव किया जाना चाहिए था, किन्तु ऐसा न कर के इन को मामूली कपड़े जबर्दस्ती छीन कर जेल की पोशाक पहनाई गई ।  जेल के कर्मचारियों का व्यवहार भी इनके प्रति अच्छा नहीं था । इनके स्वाभिमान ने इन्हें ये बातें नहीं सहने दीं और सब अभियुक्तों ने अनशन व्रत कर दिया । अभियुक्तों के बल को कम करने के अभिप्राय से ही वे भिन्न-भिन्न जेलों को भेज दिये गये थें मगर उन्होंने अलग-अलग रह कर भी स्वाभिमान के लिए यह व्रत चालू रखा, इस अनशन के समाचार छिपाने की भी कोशिश पहिले ही की तरह की गयी । सगे सम्बन्धी तक अभियुक्तों से नहीं मिलने दिये गये । जब यह समाचार बाहर फैला तब प्रान्त के कार्यकर्ताओं में बड़ी खलबली मच गयी । जारी है

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