सीस उतारे मुंह धरै तापै राखे पांव

जनवरी 21, 2009 को 9:53 अपराह्न | आत्म-चरित, आत्मकथा, खण्ड-1 में प्रकाशित किया गया | 3 टिप्पणियां
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अबतक आपने पढ़ा…

मैने स्वामी जी को प्रणाम कर उत्तर दिया कि यदि श्री चरणों की कृपा बनी रहेगी तो प्रतिज्ञा की पूर्ति में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं करूंगा । उस दिन से स्वामी जी कुछ-कुछ खुले । वे बहुत सी बातें बताया करते थे । उस ही दिन से मेरे क्रान्तिकारी जीवन का सूत्रपात हुआ । यद्यपि आप आर्य-समाज के सिद्धांतों को सर्वप्रकारेण मानते थे । किन्तु परमहंस राजकृश्ण, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ तथा महात्मा कबीरदास के उपदेशों का अधिकतर वर्णन करते थे । अब आगे पढ़ें..

Sarfaroshi

मुझ में जो कुछ धार्मिक तथा आत्मिक जीवन में दृढ़ता उत्पन्न हुई, वह स्वामी जी महाराज के सदुपदेशों का परिणाम है । आप की दया से ही मैं ब्रम्हचर्य पालन में सफलीभूत हुआ । आपने मेरे भविष्य के जीवन के सम्बन्ध में जो-जो बाते कहीं थी । वह अक्षरशः सत्य हुई । आप कहा करते थे कि दुख है, कि यह शरीर न रहेगा । और तेरे जीवन में बड़ी विचित्र-विचित्र समस्यायें आवेंगी, जिनको सुलझाने वाला कोई न मिलेगा । यदि यह शरीर नष्ट न हुआ, जो असम्भव है । तो तेरा जीवन भी संसार में एक आदर्श जीवन होगा ।

मेरा दुर्भाग्य था कि जब आपके अन्तिम दिन बहुत निकट आ गये, तब आप ने मुझे योगाभ्यास सम्बन्धी कुछ क्रियाएं बताने की इच्छा प्रकट की, किन्तु आप इतने दुर्बल हो गये थे कि जरा सा परिश्रम करने या दस बीस कदम चलने पर ही आप को बेहो्शी आ जाती थी । आप फिर कभी इस योग्य न हो सके कि कुछ देर बैठकर कुछ क्रियायें मुझे बता सकतें आप ने कहा था मेरा योग भ्रष्ट हो गया । प्रयत्न करूंगा, मरण समय पास रहना मुझसे पूछ लेना कि मैं कहां जन्म लूंगा । सम्भव है कि मैं बता सकूं । नित्य प्रति सेर आध सेर खून गिर जाने पर भी आप कभी भी क्षोभित न होते थे । आपकी आवाज भी कभी कमजोर न हुई ।

आप जैसे अद्वितीय वक्ता थे, वैसे ही आप लेखक भी थे । आप के लेख तथा पुस्तकें एक भक्त के पास थीं जो यों ही नष्ट हो गई । स्यात कुछ लेख तथा पुस्तकें श्री स्वामी अनुभवानन्द जी ‘शान्ति’ ले गये थे । कुछ आपने प्रकाशित भी कराये थे । लगभग 48 वर्ष की उम्र में आपने इहलोक त्याग दिया । इस स्थान  पर   मैं   महात्मा  कबीरदास  जी   के  कुछ  अमृत वचनों का उल्लेख करता हूं,  जो मुझे बडे़ प्रिय तथा शिक्षाप्रद मालूम हुये :-

कबीरा यह शरीर सराय है इस में भाड़ा दे के बस ।
जब भठियारी खुश रहेगी तब जीवन का रस ।।1।।

कबीरा क्षुधा है कूकरी करत भजन में भंग ।
याको टुकरा डारि के सुमिरन करो निशंक ।।2।।

नींद निसानी मीच की उठ कबीरा जाग ।
और रसायन त्याग के नाम रसायन चाख ।।3।।

चलना है रहना नहीं चलना विसवे बीस ।
कबीरा ऐसे सुहाग पर कौन बंधावे सीस ।।4।।

अपने-अपने चोर को सब कोई डारे मारि ।
मेरा चोर जो मोहि मिले सर्वस डारूं बारि ।।5।।

कहा सुना की है नहीं देखा देखी बात ।
दूल्हा दुल्हिन मिलि गये सूनी परी बरात ।।6।।
नैनन की करि कोठरी पुतरी पलंग बिछाय ।
पलकन की चिक डारि के प्रीतम लेहु रिझाय ।।7।।
प्रेम पियाला जो पिये सीस दक्षिना देय ।
लोभी सीस न दे सके नाम प्रेम का लेय ।।8।।

सीस उतारे मुंह धरै तापै राखे पांव ।
दास कबीरा यूं कहै ऐसा होय तो आव ।।9।।
निन्दक नियरे राखिये आंगन कुटी बनाय ।
बिन पानी साबुन बिना उज्जवल करे सुभाय ।।10।।

ब्रम्हचर्य व्रत पालन
वर्तमान समय में इस देश की कुछ ऐसी दुर्दशा हो रही है । जितने धनी तथा गण्यमान्य व्यक्ति है उनमें 99 प्रतिशत ऐसे हैं जो अपनी सन्तान रूपी अमूल्य धनराशि को अपने नौकर तथा नौकरानियों के हाथ में सौंप देते हैं । उन की जैसी इच्छा हो वे उन्हें बनावें । मध्यम श्रेणी के व्यक्ति भी अपने व्यवसाय तथा नौकरी इत्यादि में फंसे रहने के कारण सन्तान की ओर अधिक ध्यान नहीं दे सकते । सस्ता काम चलाउ नौकर या नौकरानी रखते हैं और उन्हीं पर बाल-बच्चों का भार सौंप देते हैं । ये नौकर बच्चों को तो भ्रष्ट करते हैं । यदि कुछ भगवान की दया हो गई और बच्चे नौकर नौकरनियों के हाथ से बच गये तो मौहल्ले की गन्दगी से बचना बड़ा कठिन है । बाकी रहे सहे स्कूल में पहुंच कर पारंगत हो जाते है ।

कालेज पहुंचते पहुंचते आजकल के नवयुवकों के सोलहों संस्कार हो जाते हैं । कालेज में पहुंच कर ये लोग समाचार पत्रों में दिये हुए औषधियों के विज्ञापन देख -देख कर दवाइयों को मंगा मंगा कर धन नष्ट करना आरम्भ करते हैं । 95 प्रति सैकड़ा की आंखें खराब हो जाती है । कुछ को शारीरिक दुर्बलता तथा कुछ को फैशन के विचार से ऐनक लगाने की बुरी आदत पड़ जाती है । सौन्दर्योपासना तो उनकी रग-रग में कूट-कूट कर भर जाती है । स्यात् कोई ही विद्यार्थी ऐसा हो जिसकी प्रेम कथायें प्रचलित न हों । ऐसी अजीब-अजीब बातें सुनने में आती हैं कि जिन का उल्लेख करने से ग्लानि होती है ।

यदि कोई विद्यार्थी सच्चरित्र बनने का प्रयत्न भी करता है और स्कूल या कालेज जीवन में उसे कुछ अच्छी शिक्षा भी मिल जाती है । तो परिस्थितियां, जिन में उसे निर्वाह करना पड़ता है, उसे सुधरने नहीं देती । वे विचारते हैं कि थोड़ा सा इस जीवन का आनन्द ले लें । यदि कुछ खराबी पैदा हो गई तो दवाई खाकर या पौष्टिक पदार्थों का सेवन करके दूर कर लेंगे । यह उनकी बड़ी भूल है ।

अंग्रेजी में एक कहावत है Only for once and Forever ओनली फार वन्स एण्ड फार एवर ! तात्पर्य यह है कि यदि एक समय कोई बात पैदा हुई, मानो सदा के लिए रास्ता खुल गया । दवाइयां कोई लाभ नहीं पहुंचाती । अंडों, जूस, मछली के तेल, मांस आदि पदार्थ भी व्यर्थ सिद्ध होते हैं । सबसे आवश्यक बात चरित्र सुधारना ही होती है । विद्यार्थियों तथा उनके अध्यापकों को उचित है कि वे देश की दुर्द्शा पर दया करके अपने चरित्र को सुधारने का प्रयत्न करें । संसार में ब्रम्हचर्य ही सारी शक्तियों का मूल है । बिना ब्रम्हचर्य व्रत पालन किये मनुष्य जीवन नितान्त शुष्क तथा नीरस प्रतीत होता है । विद्या, बल तथा बुद्धि सब ब्रम्हचर्य के प्रताप से ही प्राप्त होते है ।

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