न किसी के दिल का करार हूं

न किसी की आंख का नूर हूं न किसी के दिल का करार हूं ।
जो किसी के काम न आ सकूं वह मैं एक मुश्ते गुबार हूं ।।
न दवायें दर्दें जिगर हूँ मैं न किसी की मीठी नजर हूं मै ।
न इधर हूं मैं न उधर हूं मैं न शकेव हूं न करार हूं ।।
मैं नहीं हूं नरामये जां फिजां मेरा सुन के कोई करेगा क्या ।
मैं बड़े वियोगा की हूं सदा ओ बड़े दुखी की पुकार हूं ।।
न मैं किसी का हूं दिलरूबा न किसी के दिल में बसा हुआ ।
मैं जमीं की पीठ का बोझ हूं औ फलक के दिल का गुबार हूं ।।
मेरा बखत मुझ से बिछड़ गया मेरा रंग रूप बिगड़ गया ।
जो चमन खिजां से उजड़ गया  मैं उसी की फसले बहार हूं ।।
पये फातिहा कोई आये क्यों कोई खामा लाके जलाये क्यों ।
कोई चार फूल चढ़ाये क्योंकि मैं बेकसी का मजार हूं ।।
न अखतर से अपना हबीब हूं न अखतरों का रकीब हूं ।
जो बिगड़ गया वह नसीब हूं जो उजड़ गया वह दयार हूं ।।

अन्य रचनायें :
मुझ आशिके नाकाम की
आज यह क्या दिल में है
तुम जिक्र गमें जमाना
हमें भेज दे कालेपानी
दिल खोल कर मातम करें ।
दवा आके पिलाये कोई
यही बाकी निशां होगा
आंसु बहाना है मना
बिन स्वांती न अघाहिं हंस मोती ही खावे ।
शिवा ने मां का बन्धन खोला
सीस उतारे मुंह धरै तापै राखे पांव
राज्य तिहुंपुर को तजि डारों
हजारों बेवतन पहिले’
उनका पयाम आया तो क्या
आफत के मारे कैद की मुश्किल में है
जितना सताना हो सता ले
नकशे पर है क्या मिटाता
मुझ आशिके नाकाम की
तेरी जय हो विजय हो
बिन स्वांती न अघाहिं हंस मोती ही खावे ।
ऎ मादरे हिन्द न हो ग़मगीन

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  1. the first ghazal is written by Bahadur Shah Zafar


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