अश़्आर व कवितायें
इस अँतिम घड़ी में, मेरी यह इच्छा हो रही है कि मैं उन कविताओं में से भी चन्द का यहां उल्लेख कर दूं, जो कि मुझे प्रिय मालूम होती है और मैंने यथा-समय कंठस्थ की थीं । यह नवयुवकों को प्रेरणा प्रदान करे, प्रभु से यही प्रार्थना है !
– रामप्रसाद बिस्मिल
बिन स्वांती न अघाहिं हंस मोती ही खावे ।
भूखे प्राण, तजै भले, के हरि खरू नहिं खाहिं ।
चातक प्यासे ही रहै, बिन स्वांती न अघाहिं ।।
बिन स्वांती न अघाहिं हंस मोती ही खावे ।
सती नारि पतिव्रता नेक नाह चित्त डिगावे ।।
तिमि प्रताप नहिं डिगे होंहि चहें सब किन रूखे ।
अरि सन्मुख नहिं नवें फिरै चहें बन-बन भूखे ।।
अन्य रचनायें :
मुझ आशिके नाकाम की
अपने मतलब का आशना देखा
आज यह क्या दिल में है
तुम जिक्र गमें जमाना
हमें भेज दे कालेपानी
दिल खोल कर मातम करें ।
न किसी के दिल का करार हूं
दवा आके पिलाये कोई
यही बाकी निशां होगा
आंसु बहाना है मना
बिन स्वांती न अघाहिं हंस मोती ही खावे ।
शिवा ने मां का बन्धन खोला
सीस उतारे मुंह धरै तापै राखे पांव
राज्य तिहुंपुर को तजि डारों
हजारों बेवतन पहिले’
उनका पयाम आया तो क्या
आफत के मारे कैद की मुश्किल में है
जितना सताना हो सता ले
नकशे पर है क्या मिटाता
मुझ आशिके नाकाम की
तेरी जय हो विजय हो
2 टिप्पणियां »
RSS feed for comments on this post. TrackBack URI
टिप्पणी करे
वर्डप्रेस (WordPress.com) पर एक स्वतंत्र वेबसाइट या ब्लॉग बनाएँ .
Entries और टिप्पणियाँ feeds.
no comment.
Comment by anupam— दिसम्बर 5, 2010 #
ye kavita mujhe bahut pasand aaya
Comment by dooja sharma— जून 6, 2011 #